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राजाजी नेशनल पार्क की सीमा से सटे सिद्धबली स्टोन क्रेशर को तत्काल बंद करने के निर्देश

Nainital News, 02 जनवरी (वार्ता) : उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कथित रूप से राजाजी नेशनल पार्क के ईको सेंसटिव जोन में संचालित हो रहे सिद्धबली स्टोन क्रेशर के मामले में सोमवार को अहम निर्णय जारी करते हुए स्टोन क्रेशर को तत्काल प्रभाव से बंद करने के निर्देश दिये हैं। साथ ही राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड को इस प्रकरण में तीन महीने में जांच कर आवश्यक कार्यवाही करने को भी कहा है। मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की युगलपीठ ने कोटद्वार के सिगड्डी निवासी देवेन्द्र सिंह अधिकारी की ओर से दायर जनहित याचिका पर आज निर्णय जारी किया।

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पीठ ने पिछले साल 30 अगस्त को अंतिम सुनवाई के बाद इस मामले में निर्णय सुरक्षित रख लिया था। अदालत ने याचिकाकर्ता के तर्कों को सही मानते हुए याचिका को स्वीकार कर लिया और राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड को मामले की जांच कर तीन महीने में आवश्यक कदम उठाने को कहा है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने कहा कि पीठ ने तत्काल प्रभाव से स्टोन क्रेशर को बंद करने के निर्णय भी जारी कर दिये हैं। अदालत ने सरकार की ओर से स्टोन क्रेशरों के लाइसेंस जारी करने के मामले में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) की सहमति नहीं लेने को भी गंभीर माना और अपने निर्णय में कहा कि प्रदूषण नियंत्रण के मामले में पीसीबी शीर्ष संस्था है और उसको नजरअंदाज करना गलत है। पीठ ने संकेत दिया कि पीसीबी की अनुमति के बगैर संचालित होने वाले स्टोन क्रेशरों के संबंध में अदालत गंभीर कदम उठा सकती है।

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सुनवाई के दौरान पीसीबी की ओर से कहा गया कि प्रदेश सरकार स्टोन क्रेशर को लाइसेंस जारी करने से पहले पीसीबी की सहमति नहीं लेती है। पीसीबी की ओर से यह भी कहा गया था कि प्रथम दृष्टया सिद्धबली स्टोन क्रेशर आरटीआर के ईको सेंसटिव जोन में स्थापित है। श्री मैनाली ने आगे कहा कि पीठ ने बोर्ड से पूछा है कि ईको सेंसटिव जोन में स्टोन क्रेशर संचालित हो सकता है या नहीं? उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता की ओर से 2020 में एक जनहित याचिका के माध्यम से इस मामले को चुनौती दी गयी थी। याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि राजाजी नेशनल पार्क से सटे क्षेत्र में मानकों के विपरीत स्टोन क्रेशर संचालित किया जा रहा है। इस मामले में उच्चतम न्यायालय की गाइड लाइन का भी उल्लंघन किया गया है। इस मामले में कई दिनों तक चली मैराथन सुनवाई के बाद पीठ ने अगस्त अंत में निर्णय सुरक्षित रख लिया था।

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